Sunday, 20 July 2008

मेरे हिस्से में माँ आयी

किसी के हिस्से में मकान आया, किसी के हिस्से मे दुकान आयी ...... मैं घर में सबसे छोटा था मेरे हिस्से में माँ आयी । माँ मेरे हिस्से मे तू आ तों गयी , मै खुशी से इतराना भी चाहता हूँ लेकिन खवाहिश है तुम्हारी वही गोद मिले जो तुने मेरे लिए बचपन में पालना सा बना रखा था । कब तेरी गोद मै चला जाता ... कब नींद आ जाती... पता ही नही चलता । बस तेरी गोद और हाँ ... वो तेरा बालों को इस तरह फेरना की निंदिया अपनी दुनिया मै ले चली जाती , याद आ रहा है। आज तुझे मेरी गोद की जरुरत है ...तुझे एक पालना चाहिए... सर पर हाथ फेरने वाला एक वही हाथ चाहिए जो तेरे गोद को तरपता था। आज तू कुछ अस्वस्थ्य है , तुझे मेरे साथ की ...बाँहों की ... कंधे की ...भावनाओ की ...सख्त जरुरत है लेकिन मेरे हिस्से मे तों तू है, खुशनसीब हूँ , वो भी तेरा ही आशीर्वाद है। लेकिन वही खुशी का हिस्सा मैं तुझमें देखता हूँ तों तू बदनसीब दिखती है शायद ये मेरे कर्तव्यों का ही फल है। मुझे पता है तू मुझे बुलंदियों पर देखना चाहती है .... तू कितनी नादाँ है मेरी माँ ... बुलंदियों को तों मैं छू सकता हूँ लेकिन चाहत तों आसमान छूने की है और जब तक तू गोद मे नही उठाएगी मै कैसे आसमान छुंगा। मुझे तेरी गोद की जरुरत है। आसमान छूने के लिए नही तेरे प्यार ... स्नेह ...और अपने कर्तव्यों को पूर्ण करने के लिए। माँ ...माँ पुकार रहा हूँ , मुझे पता है तू पास नही है। लेकिन फिर भी पुकारता हूँ कोई तों जा मेरी माँ को मेरी तरप का संदेश देगा और वो जान पाए की वो जिसके हिस्से मै है वो उसी का हिस्सा है। माँ ... मै तुझमे ही हूँ और तू मुझमे है।

1 comment:

Ramashankar said...

आंखे मेरी नम हो गईं क्योंकि अब मां मेरी सिर्फ यादों का सहारा है.