Friday, 13 June 2008

मै तों हूँ परदेश में संतोष के दूकान पर निकला होगा चाँद

मै तों हूँ परदेश में संतोश्वा के दूकान पर निकला होगा चाँद .....
चाँद उनलोगों को कह रहा हूँ , जो कम से कम उस चाँदनी के तों लायक नही जिसकी मिशाल लोग खुब्सुरुती को ले करते हैं । ये तों वो चाँद है जो चान्दिनियों के फिराक मैं लगे रहते हैं । शायद चाँद का वो हिस्सा है जो हमेसा से खूबसुरुती को बदरंग करता रहा है । इन चांदों से दूर फिलहाल में जमशेदपुर में हूँ ...इसलिए अपने बदसूरत और काबिल चांदों के बारे में कुछ लिख भी पा रहा हूँ , पास रहने पर तों अभी तक इन चांदों ने मुझे अन्धेरिया बस्ती में भेज दिया रहता । अरे यार , ये चाँद कोई और नही मेरे वही दोस्त है जिनके साथ मै भी चन्दनियों के फिराक में संतोश्वा के दुकान पर पहुँच जाता था । अभी भी काम से निपटता हूँ तों अड्डा वही लगता है । ओह , दोस्तों के साथ बिताया वो समय ...हँसी मजाक ...बतकही ...शाम के समय शोम स्टूडियो के बगल में महफ़िल लगाना , याद आता है तों अब सपनो सी लगती दुनिया में खो जाता हूँ । दोस्तों के हमारे ग्रुप को आस पास वाले ग्रुप काबिल ग्रुप कहते थे , शायद आज भी कहते है । उनलोगों ने अभी तक समझा ही नही की ये काबिल आख़िर किस बात पर सीरियस होते है , हर बात पर उनका हँसना और हँसना भी ऐसा वैसा नही , हँसते हँसते लोटपोट हो जाना । वे चिढ़कर हमसे दूर भागते की कही हम पर ही तों नही हंस रहे । साइड ४ वाले तों हमें कभी समझे ही नही । एक साइड ४ का बन्दा , स्मार्ट बन्दा ही हमे समझ पाया । लगता है उसे भी हमारी तलाश थी । क्योकि वो भी तों काबिल ठहरा । वैसे इस काबिल ग्रुप में एक से बढ़कर एक काबिल है और उनकी एक से एक की गयीं हेरात्न्गेज कहानियाँ है । एक एक कर सबकी निशानी , कहानी , जुबानी , दीवानी , मनमानी , बेमानी , परेशानी ......... बताऊंगा । एक बात जरुर कहूँगा मेरे काबिल ग्रुप मैं तों हूँ परदेश में तुम चाँद बन संतोश्वा के दुकान पर निकलते रहना । संतोष भइया , संतोश्वा के लिए हमका माफ़ी दी दो ....... अगली बार काबिल ग्रुप के सरताज मुन्ना - जीतेन्द्र -गुप्ता के बारे में लिखूंगा , जो तीन नही एक ही काबिल है भाई .............

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