Wednesday, 30 April 2008

क्योंकि तोल्स्तोय और प्रेमचंद के नाम में तो आधुनिक ग्लैमर है नहीं

जयपुर में रहने वाली साहित्यकार मृदुला बिहारी अपने आप में रांची को समेत ke रखी हुई है। शायद जन्मभूमि से अन्दिखे और निभाए रिश्ते का प्रभाव यही होता है। दबे पौं आने और चुपके से चले जाने की उनकी चोरी को आखिर मैंने पकड़ ही लिया। और इसबार उनसे साहित्य और समाज पर खुल के बातें की। प्रस्तुत है उनसे की गयी sakchatkar का कुछ अंश-
प्रश्न - अपने शादी के बाद लिखना शुरू किया लेकिन आप कहती है की यह शौकिया नही था, तब अपने आप को पहचानने में इतनी देर क्यों हो गयी ?
उत्तर - मेरे संस्कार में ही साहित्य है। मेरे माता-पिता प्रकांड विद्वान थे। हमारे यहाँ दिनकर, बेनीपुरी जैसे महान साहित्यकारों का आना-जाना लगा रहता था। १२ साल की उम्र में ही मैंने नामी-गिरामी साहित्य को कई बार पढ़ लिया था। मौलिक विचार तो उसी समय से बनने लगे थे.लेकिन एक बेचेनी सी थी जो लगातार मुझे जह्क्झोरती थी। शादी के बाद यही अनमनापन मुझे लिखने की और प्रेरित किया और उससे मिली संतुस्टी ने मुझे जतला दीया की क्या बेचेनी थी मेरे अन्दर।
प्रश्न- साहित्य और साहित्यकार की जब बात आती है तो यह बात उठाना लाजिमी है की आखिर साहित्य पीढ़ी दर पीढ़ी क्यों पढ़ जाay ?
उत्तर- वर्तमान में यह सवाल बिलकुल सामयिक है। क्योंकि तोल्स्तोय और प्रेमचंद के नाम में तो कोई आधुनिक गलऐमर नहीं है। न ही साहित्य में विज्ञापन है और न ही बड़ी संख्या में साहित्य का स्वाद लेने वाले लोग। साथ ही आज लोगों को समकालीन चेतना चौकाati भी नहीं। लेकिन फिर भी व्यावसायिकता के samannatar हम जैसे रचनाकार रचनावों को अभी भी समाज परिवर्तन का औजार मानते है। कुछ समकालीन लोग इसे साहित्य के प्रति हमें भरम का सीकर भी मान सकते है। लेकिन सच तो आज भी है की कई रचनाकारों की रचना आज भी मानवीय संवेदना बयां करती है।
प्रश्न- आज का यूथ जो ग्लैमर पसंद है, उसकी पसंद किसी खास विषयों तक ही सीमित है और आपके साहित्य में तो कोई ग्लैमर है नहीं। कैसें उन्हें प्रोत्साहित करेंगी साहित्य की ओर?
उत्तर- ऐसी बाट नही है, और कौन कहता है की साहित्य में कोi ग्लैमर नही है। जहाँ तक युवाओं की बात है तो उन्हें टारगेट कर कई किताबें लिखी जा रही है, जो बाज़ार में आते पड़े है.ऐसा नही है की अआज के यूथ को साहित्य में इंटरेस्ट नही है। हम उन्हें जबरदस्ती धकेलना भी नही चाहते। जितनी क्रिअतिविटी और कल्प्नासिलता आज के यूथ मैं है उतनी पुराने लोगों मैं नही है। साहित्य में थोरी रोचकता और सरलता लाकर उन्हें आकर्षित किया जा सकता है।
प्रश्न- ग्लैमarize करने के चक्कर में बीज्नेस हावी होती जा रही है, इसमें संतुलन कैसे आएगा ?
उत्तर- ग्लैमर के साथ-साथ बिजनस तो आएगा ही। और अब कोई प्रेमचंद और ग़ालिब तो है नही जो आनेवाली पीढ़ी के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा डे। इस कारन साहित्य और साहित्यकार कमज़ोर पढ़ रहें है। वैसे भी किसी बडे हिन्दी साहित्यकार ने कहा है की कंजूसी और वादाखिलाफी हिन्दी साहित्यकारों की कमजोरी है। अगर इनपर नियंत्रण पा लिया जाay तो संतुलन खुद ba खुद हो जायेगा।
प्रश्न - साहित्यकारों की सामाजिक जिम्मेदारी क्या होनी चाहिय ?
उत्तर- वही जो एक आदर्श नागरिक की होनी चाहिय।
प्रश्न - आपकी jyadatar rachnaon में नारी शास्क्तिकर्ण पर जोर दिखता है, कोई खास वजह ?
उत्तर- रचनाकार हमेसा नारी पुरुष से ऊपर उठकर काम करता है। हाँ लेकिन में कह सकती हूँ की मेरी उपन्यासों में नारी की जटिल मानसिकता और उसकी द्वंद मुख्य विषय वस्तु होते हैं।

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